भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सड़कें भरी जलूस की आहो-कराह से / विनोद तिवारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सड़कें भरीं जुलूस की आहो-कराह से
होते रहे सदन में बहस-औ-मुबाहसे

यह हादसा भी कोई भला हादसा हुआ
देखे हुए है देश ख़तरनाक हादसे

कुछ गालियों का ताप हवा में घुला-सा है
इक दिल-जला अभी-अभी गुज़रा है राह से

शब्दों में आप-हम दो सगे भाइयों-से हैं
पर अर्थ कितना भिन्न है ज़ाहिर निगाह से

मुस्कान आपकी बहुत दिलकश लगी मगर
हम जानते हैं आपके दिल हैं सियाह -से

मतलब-परस्त पक्ष में थे या विपक्ष में
बाक़ी शरीफ़ लोग रहे ख़ाम-ख़्वाह-से