सड़कोॅ पर / विकास पाण्डेय
खेतोॅ रं तोंय चुप अनाज दौ बात नै लानोॅ सड़कोॅ पर
चार जनां जे नपना बनलै धुय्यां उड़लै सड़कोॅ पर
लाठी-सोंटा बम-तम फोड़ी मारी भगैलकै सड़कोॅ पर
तिनका-तिनका जोड़ी-जोड़ी घोॅर उठैलकै सड़कोॅ पर
कूड़ा-कर्कट चुनी-चुनी बाग लगैलकै सड़कोॅ पर
खून-पसीना बुनी-बुनी भाग जगैलकै सड़कोॅ पर
घोॅर गिरै छै, घोॅर उठै छै असली शासन सड़कोॅ पर
रोग उगै छै, रोज डूबै छै सूरज सन सब सड़कोॅ पर
चाँदनी राती कुत्ता-गीदड़ राज करै छै सड़कोॅ पर
मुर्गा-खस्सी जे रं बिक्कै, लोग बिकै छै सड़कोॅ पर
जानवर जात बड़ी बज्जात, गावै सुखिया सड़कोॅ पर
मोर-कबूतर के रं चुप्पा सब सुनवैय्या सड़कोॅ पर
अगर कहीं जों भारी लागौं उतरी आबोॅ सड़कोॅ पर
सन-सनाठी हुक्का-पाती खेलोॅ भैय्या सड़कोॅ पर
नै तेॅ स्वाति पावै लेली मूँ फैलावोॅ सड़कोॅ पर
मन्नोॅ केॅ समझावै लेली हाथ देखलावोॅ सड़कोॅ पर ।