भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सड़क / चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
यह सड़क सबकी है
साइकिल पर बल्टा लटकाए दूध वालों की
मिचमिची आँखों पर ऐनक चढ़ाए
स्कूटर पर टंगे
दफ़्तर जाते हुए बाबुओं की
पीठ पर क़िताबों का बस्ता लादे
पानी की बोतल टाँगे
रंग-बिरंगी यूनीफ़ार्म में स्कूल जाते हुए
हँसते-खिलखिलाते बच्चों की
घर-बार गिरवी रखकर शहर के बड़े डॉक्टर के पास
या मुकदमे की तारीख़ पर जा रहे
गाँव कस्बों के अनगिनत लोंगों की
यूँ तो यह सड़क
आवारा जानवरों
हाथ पसारे अधनंगे भिखरियों तक की है
कल इसी सड़क पर
बेंतों की मार से लहूलुहान
पड़ा था एक गँवार दूधवाला
उसे नहीं पता
यह सड़क किसी की नहीं होती
जब ?
जब इस पर बाँस-बल्लियाँ सजती हैं
जब इस पर सायरन और सीटियाँ बजती हैं
जब इस पर लाल नीली बत्तियाँ दौड़ती हैं
एयरपोर्ट से सर्किट हाउस तक