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सड़क / निर्मला गर्ग

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मैं जिस कविता को लिखना चाहती थी
लिखी नहीं गई वह अभी तलक
शायद लिखी नहीं जाएगी कभी भी

उसे लिखने की ख़्वाहिश में पर
लिखीं गईं इतनी कविताएँ कि
सड़क बन गई एक छोटी-सी

शहर में जब-जब धुआँ उठेगा
आग दिखेगी
लोग इसी सड़क से घर आएँगे ।