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सड़क / नीलेश रघुवंशी
Kavita Kosh से
आकाश के लिए नहीं है
नहीं है दीवारों के लिए
खिड़की से दिखती ज़रूर है लेकिन
खिड़की के लिए भी नहीं है सड़क!
पाँव से डामर को छुड़ाते
सोचते नहीं हम
सड़क को चुभे अपने निशानों के बारे में
क्या सड़कें भी दर्द से कराहती हैं
जब सड़क पर अर्थी लिए चलते हैं लोग
झूमते बारातियों के संग
क्या झूमती हैं सड़कें भी
आदमी की हर यात्रा शुरू होती है सड़क से
गोल घुमावदार रास्ते
सावधान आगे अंधा मोड़ है
अंधा मोड़... मायने क्या उनसे पूछो
दर्ज़ हैं
जिन रास्तों और गाँवों के नाम रजिस्टर पर
सड़कें नहीं जातीं उन तक
जाते हैं सिर्फ़ धुँआ और कालिख
बदल जाते हैं जो आँकड़ों में
नक्शे में दौड़ती ये सड़कें कहीं नहीं पहुँचातीं
जन्मजात दुश्मनी है डामर और पानी में
सड़क सोने की खान है खाऊ ठेकेदार के लिए।