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सड़क / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
कहाँ-कहाँ से आतीं सड़कें
और कहाँ को जाती हैं,
दौड़-दौड़कर जाती हैं ये
दौड़-दौड़कर आती हैं।
पर शायद यह सही नहीं है
सड़क वहीं पर रहती है,
दौड़ा तो करते हैं हम-तुम
सड़क सभी कुछ सहती है।
बोलो-बोलो, सड़क, तुम्हारी
छाती पर है बोझा कितना?
समझ न पाओगे तुम भैया-
बोझा है छाती पर इतना!
इतना बोझा ढोकर भी मैं
आह नहीं, पर करती हूँ,
मेरा तप बस यही-यही है-
सोच, सभी कुछ सहती हूँ।
मैं बोल-ओ सड़क, तुम्हारी
कठिन तपस्या भारी है,
तुमसे ही जीवन में गति है
जग इसका आभारी है!
बोली सडत्रक-याद यह रखना
नहीं रौंदना मुझको तुम,
नहीं तोड़ना, नहीं फोड़ना
तब जी लेंगे मिल हम-तुम!
तब से भाई, जान गया हूँ
बड़े काम की चीज सड़क है,
जो इस पर कूड़ा फैलाते
उनसे होती मुझे रड़क है!