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सड़क / रतन सिंह ढिल्लों
Kavita Kosh से
जब से सड़क ने
गाँव में प्रवेश किया है
गाँव की हर शाम ने
उदासी का जाम पिया है ।
सड़क, जिस किसी की भी
बाँह पकड़ कर
शहर ले गई है
गाँव ने उस शख़्स को
फिर कभी देखा नहीं है ।
सड़क गाँव के माथे पर
बदनुमा ग़मगीन एहसास की
एक काली लकीर बन गई है ।
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला