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सड़क / शंभुदयाल सक्सेना
Kavita Kosh से
कोई कहीं गया था जिस दिन,
जन्म लिया था मैंने उस दिन
अब भी जहाँ कहीं जो जाता,
मुझको अपना साथी पाता!
बाजारों में जाती हूँ मैं,
दरवाजों तक आती हूँ मैं!
नगरों में घर-घर मेरा है
निर्जन वन मेरा डेरा है!
सभी पहाड़ों पर चढ़ आई,
सभी घाटियों से कढ़ आई!
ऊँचे, नीचे, साफ, कँटीले,
छाने सब स्थल कंकरीले!