भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सड़सठ / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
अै सगळा भोळा है
जका आपसरी मांय विस्वास करै
जदकै भाखा रो विस्वास सिधरग्यो
-निसरग्यो
राम सांप्रतै ई सबद रो
भूत-भूंवाळी खावै भाव
कुनबो भाखा रो
-कियां बिखरग्यो!