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सतगुरु सर्वानन्द / लक्ष्मण पुरूस्वानी

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कण-का में रमी रहियो, सतगुरू सर्वानन्द
अखर-अखर में आंही, सतगुरू सर्वानन्द
धर्तीअ ते आकाश में, सतगुरू सर्वानन्द
कलजुॻ में करतार, हीणनि जो हमराहु
पार उतारण वारो तूं, सतगुरू सर्वानन्द
हिते दिसूं या हुते दिसूं, नजर अचीं थो सांई
हर हंधि हर जगह तूं, सतगुरू सर्वानन्द
कर्म हुजे या धर्म, तूं ई तूं सिमरण में
हरदम याद रही थो, सतगुरू सर्वानन्द
तूं वेदनि में पुराणनि में, ग्रन्थ प्रेम प्रकाश में
भागवन्त गीता रामायण में, सतगुरू सर्वानन्द
धरतीअ ते आकाश में, सिज चण्ड ऐं तारनि में
सभ में तूं ई समायलुं, सतगुरू सर्वानन्द
मुश्क मुख ते हरदम, अचे न वेझो गम
मूरत तूं ममता जी, सतगुरू सर्वानन्द
रिश्ता नाता जॻ जा, कूड़ कपट जा छन्द
तारी तारणहार तूं, सतगुरू सर्वानन्द
सोना जेवर धन ऐं दौलत महल हुजनि या माडियूं
तुहिंजी महर बिना सभि कूड़ा सच्चो सतगुरू सर्वानन्द
कूड़ी माया कूड़ी काया कहिंजे कम न ईंदी
राम नाम जो मन्त्र दींदो सतगुरू सर्वानन्द
प्रेम रखी श्रद्धा सां जेको गुरू चरणनि में ईंदो
दीदों उन खे सुख ऐं शान्ति सतगुरू सर्वानन्द
विश्वास रखी जे हिन दर ते ईंदा फलन्दा ऐं फल पाईदां
चवे ‘लक्षमण’ दूर कन्दो सभि दुखड़ा सतगुरू सर्वानन्द