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सतरंगी तितली / रमेश रंजक

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माणिक अधर, नीलमी आँखें
ये पुखराज बदन
मन घायल कर गई तुम्हारी
हीरकनी चितवन

श्वेत शिला-सी दिपे
मोतिया
अँगिया कसी-कसी
रखनख-मणि, पन्नई
चूनरी
लहरे नागिन-सी
कैसे पाए प्राण जौहरी
ये अनमोल रतन ?

पग पर मूँगा रंग
महावर
शीश कटी मछली
हाथों पर गोमधिया
मेंहदी
सतरंगी तितली
कोमल काया से क्यों बाँधा
इतना पाहनपन ?