सतवाणी (13) / कन्हैया लाल सेठिया
121.
एक बेजको जे हुवै
कपड़ो बाजै पूर,
पण आभै रा छेकला
बण्या चनरमा सूर,
122.
पूग गाँव रै गोरवै
गेलो देई छोड़,
बीं गेलै बगतो रयां
कोनी पूगै ठोड़,
123.
पणिहारी, पाणी, घड़ो
मिलग्यो सगळो मेळ,
फकत इंडुणी रै बिन्यां
खिंडियो मंडियो खेल,
124.
मुगता चुगतां हंस नै
किण दिन देख्यो दीठ ?
बिरथ तरफ, कैबत हुवै
निज में आप अदीठ,
125.
पोल ढकीजै बावला
कद ढकियां स्यूं पोळ ?
नहीं खोलसी पोळ जे
खुलसी थारी पोल,
126.
कता दरब के गुण धरम
मन री जाण पिछाण,
पुतली रै परदै परां
कांटां फूल समान,
127.
इंनछ्या री मछली चपल
गुदळावै मन नीर,
देख दापळै दीठ रो
बुगलो बैठ्यो तीर,
128.
तणो मून है रूंख रो
पण पŸाा वाचाल,
भाज्या पड़ पतझड़ निरख
लागी कती’क ताळ ?
129.
गिण मत उण रा गासिया
जिण नै ल्यायो नूंत,
आडै हाथां पुरस जे
चावै थारी कूंत,
130.
दौरी विरती छूटणी
बदल सकै है रूप,
तिर्यो कनक रो समद पण
पड़्यो सबद रै कूप,