सतवाणी (33) / कन्हैया लाल सेठिया
321.
मुगती इंछै जीव जे
कोनी छूट्यो राग,
विणसै इंच्छया बीज जद
उगसी हियै अराग,
322.
ममता त्यागै पण हुवै
निरमम कोनी संत,
वीतराग रो अरथ है
करूणा सिन्धु अनन्त,
323.
हुवै न जिण रै हेत में
रंच सुवारथ गंध,
मिनखपणै रा पुसब बै
सांसां बसै सुगंध,
324.
नहीं तूंतड़ै में घलै
ज्यूं काढयोड़ो धान
बियां न पाछो बावडै़
वचन कयोड़ो जाण,
325.
जुड़ै नहीं ज्यूं रूंख स्यूं
एकर झड़ियो पान,
बिंयां न फाट्यो मत मिलै
निरथक खेंचाताण,
326.
हेम कांचली तावड़ी
धानी साड़ी खेत,
बण ठण बैठी गोरड़ी
मारवाड़ री रेत,
327.
आड़ावळ माथै मुगट
चामळ गळ रो हार,
जैसाणै पग रोपिया
मारवाड़ मोट्यार,
328.
माथै अंबर मोळियो
कांधै सूरज ढाळ
लू रो लपको टोरड़ो
मरूधर मरद मुंछाळ,
329.
रवै कुअै रै मांय नै
जिंयां कुअै री छांव,
बिंयां मतलबी मिनख रै
भंवू न बीं रो गांव,
330.
रात डावड़ी बगत री
आंचल ओळै ले’र,
सूरज रो दिवळो चढी
फेरूं गगन मुंडेर,
331.
देस नही मरूदेस सो
मृगमद जिसी न गन्ध,
सुरसत रै भंडार में
दूहै जिस्यो न छन्द,