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सती : चिता पर प्रसूत हुई एक रात / दिलीप चित्रे

चिता पर प्रसूत हुई एक रात
मेरे पौरुष को झिंझोड़ती है उसकी सुहाग-सज्जा
मृत्यु के ताप से गिरा हुआ उसका गर्भ
मेरी आँखें फोड़ कर भीतर घुस जाता है; और
मेरे ग्रीक पुतले का अण्डकोष चकनाचूर हो जाता है ।