सत्कार जिन में हमको सिखाया न जायेगा
उन महफ़िलों में हमसे तो जाया न जायेगा
नेता हमारे देश के सब हो गये हैं भ्रष्ट
अब इनसे गीत नेकी का गाया न जायेगा
नासूर मेरे दिल के कभी आके देख जा
लफ़्ज़ों में हाले-दिल तो बताया न जायेगा
चौखट पे उस की सर जो झुका तो झुका रहा
दुनिया जो चाहे लाख उठाया न जायेगा
ज़ालिम उजड़ता है तू क्यों दिल की बस्तियां
उजडी तो इनको फिर से बसाया न जायेगा
मौसम तो नफ़रतों का है सारे जहान में
लेकिन चरागे-अम्न बुझाया न जायेगा।