भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सत्ताईस / प्रबोधिनी / परमेश्वरी सिंह 'अनपढ़'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन में साथी बहुत मिले, पर मेरे साथी रहे नहीं
सब अपने-अपने रंगों के
भावों के और उमंगों के
कोई ऊपर कोई नीचे, मुझसा धारों में बहे नहीं
मतलब के कितने मीत मिले
कितने क़िस्मों के गीत मिले
धुन के मतबाले बहुत मिले, पर मेरे धुन के रहे नहीं
है जहर घुला मेरी वाणी
मीरा न मिली जो कहे पानी
सीने वाले बहुत मिले पर पीने वाले रहे नहीं
सब अपने यथार्थ के साथ चले
कोई भले मिले, कोई बुरे मिले
मैं सबको दिल में जगह दिया, पर दिल से कोई मिले नहीं