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सत्ता की गर हो चाह तो दंगा कराइये / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

सत्ता की गर हो चाह तो दंगा कराइये।
बनना हो बादशाह तो दंगा कराइये।

करवा के क़त्ल-ए-आम बुझा कर लहू से प्यास,
रहना हो बेगुनाह तो दंगा कराइये।

कितना चलेगा धर्म का मुद्दा चुनाव में,
पानी हो इसकी थाह तो दंगा कराइये।

चलते हैं सर झुका के जो उनकी ज़रा भी गर,
उठने लगे निगाह तो दंगा कराइये।

प्रियदर्शिनी करें तो उन्हें राजपाट दें,
रधिया करे निकाह तो दंगा कराइये।

मज़हब की रौशनी में व शासन की छाँव में,
करना हो कुछ सियाह तो दंगा कराइये।