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सत्य-धर्म-रत, अनासक्त / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग विलावल-ताल दीपचंदी)
सत्य-धर्म-रत, अनासक्त जो धर्म-कमाई पर निर्भर।
जननी-बहिन-सुता-सम जो पर-नारीको लखते नरवर॥
चोरी-रहित, नित्य निज स्थितिमें तुष्ट, बोलते सदा मधुर।
किसी हेतु जो झूठ न कहते, रहते सदा सत्यपर स्थिर॥
परद्रोह वर्जित, समदर्शी, दयाशील, जो नहीं निठुर।
भजन-परायण, निष्कामी वे दिव्यलोकमें जाते नर॥