भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सत्य अपना अपना / रमा द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सत्य, सत्य है
झूठ भी अपने आप में
सत्य है।
सबको अपना सत्य
स्वयं ही जीना पड़ता है।
सत्य अच्छा या बुरा होता नहीं
उसे रूप देता है इन्सान ।
आधुनिक जीवन का सत्य
टुकडों-टुकडों में बंट गया है।
उपर से नीचे तक
बड़े से छोटे तक
कौन हैं वे? जिनका झूठ, उनका सत्य न हो।
सभी अपने सत्य को जीने में उलझेहैं
मकडी के जाल जैसा
नहीं निकल पाता कोई
अपने सत्य से ।
स्वयं ही तो रचा था
सत्य का चक्रब्यूह
अब नही भेद पाते इसे
आना पड़ेगा फ़िर
किसी अर्जुन को ?
सत्य का चक्र्ब्यूह भेदने के लिए
तब तक करो इन्तज़ार
सहते रहो खुद का संताप
यह तुम्हारा अपना है
किसी ने दिया नहीं ।
समेट लो टुकडे-टुकडे सत्य को
समाहित कर लो अपने अन्दर
विष-अमृत के घूंट
मंथन करो स्वयं ही
सत्य के दर्शन पा जावोगे।
बिखर- बिखर कर जीना छोडो
पूर्णता में जिवो
इसी में जीवन की अमरता है
और
संसार का सुख भी।