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सत्य की उपलब्धि के नाम पर / रवि कुमार
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सत्य
कहते हैं ख़ुद को
स्वयं उद्घाटित नहीं करता
सत्य हमेशा
चुनौती पेश करता है
अपने को ख़ोज कर पा लेने की
और हमारी जिज्ञासा में अतृप्ति भर देता है
कहते हैं सत्य बहुत ही विरल है
उसे खोजना अपने आप में एक काम होता है
वह मथ ड़ालता है सारी बनी-बनाई परिपाटियों को
दरअसल
सत्य कभी एक साथ पूरा नहीं खुलता
वह उघड़ता है परत दर परत
और एक यात्रा चल निकलती है
अनंत सी, अनवरत
यह अलग बात है कि
हममें से अधिकतर पर
गुजरता है यह दुरूह और दुष्कर
उसे ही सत्य मान लेते हैं
जो मिल जाता हैं इधर-उधर
हारे हुए हम
बुन लेते हैं चौतरफ़ चारदीवारियां
सचेत और चौकस होते जाते हैं
रूढ़ और कूपमण्डूक
भ्रमों की आराधना को अभिशप्त
यही बाकी बचता है
हमारे पास
सत्य की उपलब्धि के नाम पर