भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सत्य से अनजान हैं हम / कैलाश झा 'किंकर'
Kavita Kosh से
सत्य से अनजान हैं हम
भारती की जान हैं हम।
माँ हमारी है सुखी तो
माँ की ही मुस्कान हैं हम।
सब हमारे हम सभी के
इसलिए वरदान हैं हम।
चाहते हैं सबकी खुशियाँ
देश हिन्दुस्तान हैं हम।
दुश्मनों को माफ़ करते,
पर नहीं नादान हैं हम।
चार-सू इन्सानियत से
जी रहे इन्सान हैं हम।