सत्य / विमल राजस्थानी
छुटी सेज कुसुम की, पीछे छूटी दूनियाँ सारी छूटे हीरे, मोती, पन्ने, छूटे महल-अटारी पग-पायल की रुन-झुन छूटी, छूटी केशर-क्यारी पीछे छूटी दुनियाँ सारी झनन्-झनन् झन्जने वाली टूट गयीं जंजीरें छूटी वंशी, छूटी वीणा, छूट गयीं मंजीरें
वासव आगे ही बढ़ती जाती यमुना के तीरे
आगे-आगे त्राता, पीछे कहती सँग-सँग धीरे
बुद्धं शरणम् संधं शरणम्, धम्मं शरणम् ही रे !
दूधो भरी तलैया छूटी, छूटे केशर-चंदन
रतनारी आँखो का काजल, छूटे बिछूए-कंगन
पीछे छूट गयीं सब सखियाँ, छूटा सारा मधुवन
छूटे सुरथ, अश्व भी छूटे, छूट गये सब प्रहरी
पीछे छूट गयी यौवन की आग भरी दोपहरी
वासव कहती बढ़ती ही जाती है तीरे-तीरे
बुंद्ध शरणम्, संधं शरणम्, धम्मं शरणम् ही रे
छूटा मद यौवन का, तन का अंहकार भी छूटा
नौ लक्खी बिंदी भी छूटी चन्द्रार भी छूटा
दर्प असीमित रूप-सिन्धु का, मन विकार भी छूटा
तन के लोभी पीछे छूटे, छूटे सारे बंधन
धन का मोह, कीर्ति की लिप्सा, रत्न, रजत-द्युति, कंचन
संगी यमुना की लहरो के मंद-मंद पावन स्वन
और अंत में कालिन्दी भी नहीं रही संगी रे
बुद्धं शरणम्, संधं शरणम् धम्मं शरणम् ही रे
चिन्ह चरण-तल
अमृत-आत्म-बल
पथ का सम्बल
धो अंतस्तल
आँखो छल-छल
पद-चिहन्ों पर
बिखरें पल-पल
आँसू-मोती
पुलकन होती
लगन एक अवशेष दूसरी दुनियाँ की रे-
- बुद्धं शरणम्, संघं शरणम् धम्मं शरणम् ही रे
- बुद्धं शरणम्, संघं शरणम् धम्मं शरणम् ही रे
- बुद्धं शरणम्, संघं शरणम् धम्मं शरणम् ही रे