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सत, चित, आणंद / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
लटकै
सिसटी रा असंख पिंड
एक दूसरै रै खिंचाव पाण
अधर बंब,
दीखतै सूरज स्यूं केई पिंड
घणा टणका
केई अणु स्यूं भी सुछम
आं पिंडा में एक पिंड
राई जती’क धरती
जकी री छाती पर हिमाळो
बारोकर मोटा समन्दर
पण सगळां स्यूं बड़ी बात
इण धरती री जीवा जूण में
बो मिनख
जकै नै निजरो बोध
पण जका मानलै
देही नै ही साच
बै भाजै भोगां रै लार
जका सिलगावै तिसणा री लाय
पण जका ग्यानी
बै जाणै काया आतमा रो खोखो
कोनी खावै धोखो
बां री दीठ
अणभूतै
किरिया रो कारण चेतण
जकै रो सभाव
सत, चित, आणंद !