भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सदन शून्य में दीप जलता नहीं है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सदन शून्य में दीप जलता नहीं है
कसक है बची मन सँभलता नहीं है

विरह सह लिया राम हम ने तुम्हारा
वचन वाण उर से निकलता नहीं है

उठो भ्रात लक्ष्मण चिता को जला दो
रही प्रेम में अब प्रबलता नहीं है

दिया त्याग हम को यहाँ राम जी ने
प्रणय खग हृदय बीच पलता नहीं है

विरह चिर विरह भाग्य में है हमारे
लिखा भाग्य का लेख टलता नहीं है

दिया है भले ही हमे त्याग प्रिय ने
हृदय में भरी पर कुटिलता नहीं है

नहीं दोष किञ्चित नहीं है किसी का
समय ही हमारा बदलता नहीं है