भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सदस्य:महावीर जोशी पूलासर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यु जी सोरो करै,

दुसरा गै घर री बाता सुण गै,

जकी बी घर मॆ हॊवण लागरी है

बा ही तॊ तॆरॆ घर मॆ हॊवॆ,

तु भीत रै चिप्यॊडॊ इनै,

बॊ ही तॊ बिनॆ चिप्यॊडॊ खड्यॊ है,

क्यु नी सॊचै तु कै ..भीता कै भी कान हॊवॆ,

आज तु सुणसी

काल बॊ तॆरी सुणसी,

क्यु सरमा मरै,

मॊरीयॊ पगा कानी दॆख गॆ रॊवै ,