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सदाजीवी उडीक / चंद्रप्रकाश देवल
Kavita Kosh से
थूं कंकू
म्हैं चोखा
लिलाड़ री हद बिना
मिलण रा ई जोखा
थूं सूखै
म्हैं खिरां
प्रीत री इत्ती इज आयस
लिखी व्है तकदीरां
नित हमेस न्यारा-न्यारा पड़्या
आपौआप री डाबी में
उडीकां
आंगळी, अंगोठा, पांणी अर थाळी रौ मेळ
प्रीत ई कैड़ी-कैड़ी चीजां री मारेळ
बस, उडीक री अमर वेल!