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सदा निकट हो मन के यह विश्वास बना रहने दो साथी / रंजना वर्मा

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सदा निकट हो मन के यह
एहसास बना रहने दो साथी।
तुम मेरे हो बस इतना
विश्वास बना रहने दो साथी॥

बड़ी कठिनता से समझा पायी हूँ अपने पागल मन को,
आधा भरा पात्र है मेरा अभी ज़िन्दगी के अमृत से।
मिल कर यह एहसास न हो खाली है पात्र अभी तो आधा,
जीना मुश्किल हो जायेगा क्या न कहो भीषण अतृप्ति से?

इसीलिए मत मिलो मिलन
अभ्यास बना रहने दो साथी।
तुम मेरे हो बस इतना
विश्वास बना रहने दो साथी॥

मिलनातुर है ह्रदय किंतु आशंकाएँ हैं पल-पल डँसती हैं।
मिलन विरह जो दे जायेगा उस वियोग से डर लगता है।
जीवन-जल-सा प्यार तुम्हारा रचा बसा है रोम-रोम में,
खो ना कहीं जाये फिर मुझ से दैवयोग से डर लगता है।

अपना मधुर मदिर पावन
आभास बना रहने दो साथी।
तुम मेरे हो बस इतना
विश्वास बना रहने दो साथी॥

शायद बहुत कठिन होगा मिलने पर इस मन को समझाना,
कैसे कहूँ 'चले भी आओ' कैसे लिखूँ 'न अब तुम आना'।
अब तक बसी हुई अंतर में 'एक दृष्टि' उस बीते युग की
निर्णय हाथ तुम्हारे हैं चाहो तो आना या मत आना।

मानो तो मन का मन में
आवास बना रहने दो साथी।
तुम मेरे हो बस इतना
विश्वास बना रहने दो साथी॥