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सदियों से हम पिसते आये, ना दिया सम्मान किसेनै / जय सिंह खानक

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सदियों से हम पिसते आये, ना दिया सम्मान किसेनै
नीच, गलीच, मलीच कहं, ना समझे इंसान किसेनै
 
दलित होंणके के के दुख, यो हाल सुणादुं सारा
किते भी ना मिलती इज्जत, हर जगह गया फटकारा
मन्दिर, मस्जिद मै नां घुसण दिये, या कोणसा दोष हमारा
इक्कीसवीं सदी आगी, आज भी म्हारा कुआं न्यारा
सदियों से फिरै मारा-मारा ना दी पहचान किसेनै
नीच-मलीच-गलीच…
 
नऐ-नऐ नाम रोज मिलैं, जो गिनती मैं ना आवैं
सुण-लुण के दिल छलणी होज्या, मरहम भी ना पावैं
अपणा रोब बढ़ावण नै, ये चुटकले रोज बणावैं
चीर कलेजा पार लिकड़ज्या, शब्दां के तीर चलावैं
हम मशोक कालजा चुप रहज्यावा, ना देवां उल्टा ब्यान किसेनै
नीच-मलीच-गलीच…
 
पढ़ण लिखण का अधिकार दिया ना, एके अधिकार दिया हमनै
पैर पकड़ म्हारी सेवा करल्यो, एक शुद्र नाम दिया हमनै
म्हारे खेतां मैं करो मजदूरी, बस योहे काम दिया हमनै
मल-गोबर की करो सफाई, और झाडू थमा दिया हमनै
यो कोणसा जुर्म हामनै, ना करा बख्यान किसने
नीच-मलीच-गलीच…
 
किसे चीज मैं सीर नहीं म्हारा, ना कोई हिस्सेदारी
दर-दर ठोकर खाते फिररे, फेर ना मजदूरी थ्यारी
लोग कहैं इन्हें देश लूट लिया, ना म्हारी समझ मैं आरी
महिने मैं दस दिन काम मिलै, बस या पूंजी सै म्हारी
या आधी दुनियाँ ढंग़ के खारी, ना कही शैतान किसेनै
नीच-मलीच-गलीच…
 
सदियों तक गुलाम रहे, म्हारा रहा नरक मैं जीणां
बिना दुध की चाय पीवैं बालक, यो म्हारा खाणा-पीणां
सुके टिकडै़ मिर्च घणी, ना देखा दूध और घीणां
365 लगी बितारी और, शरीर का होग्या झीणां
यो जीणा के जीणा जयसिंह, ना समझे अरमान किसेनै
नीच-मलीच-गलीच…