भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सदी की हवाएँ / प्रमिला वर्मा
Kavita Kosh से
हवाएँ
भागती आईं
वे मुड़ी हैं इस बार
इतिहास के
उन
सफों की तरफ
जहां कुछ शब्द हैं खड़े
ठहरो !
यह चिंता का विषय है
कि
सदी की खौफनाक हवाएं
इतिहास की ओर मुड़ी हैं
और,
एक पूरी की पूरी जमात
मूक सी खड़ी है।