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सदी के अंत में / रविकान्त
Kavita Kosh से
सदी जिन दुःस्वप्नों से उबर आई है
गर्व कर सकता था मैं सबसे पहले
उन्हीं पर
लिखना चाहता था मैं अपना सब कुछ
सदी के नाम
यदि उतर चुका हो हमारी याददाश्त से
सती का आखरी चेहरा तो
भुला दिया जाय तत्काल
इस प्रक्रिया को
यदि न रह गई हो शेष अश्पृश्यता
तो पर लिखे
'अश्पृश्यता मानव जाति पर कलंक है' के नारे
मिटा दिए जायँ
यदि हर शहर के पास एक-एक तहखाना हो
जिसमें समा सकें
हजारों-हजार लोग चुपचाप
तो
साफ हो जाने चाहिए सबसे पहले
शहरों के जख्म
जैसे
लुप्त हो गई है कोढ़ी सदी
हमारे भीतर