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सद्इच्छा / पद्मजा शर्मा

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‘आप हमेशा मुस्कराती रहें
बिलकुल इसी तरह’
अनुज
तुम्हारी यह शुभकामना आई है मेरे पास
जब कोई किसी के लिए
ऐसी सद्इच्छा करता है
तो धरती सपना लेती है
और धरती सपना लेती है
तो बारिश होती है
नदियाँ बहती हैं
वनस्पतियाँ उगती हैं
फूल खिलते हैं
पक्षी नाप डालते हैं
बूते से ज़्यादा आसमान
धरती सपने में सुनती रहती है
माँ की लोरियां
पत्तों के गिरने की आवाजें
धरती सपने में होती है तो
चाँद-सितारे भी खोलते हैं आँखें
धीरे-धीरे
और तब अंधेरों के समन्दर से
उठने लगती हैं रोशनियाँ
जब धरती आँखें खोलती है
तो जगमगा उठता है
कण-कण ब्रह्माण्ड का
बच्चों की खिलखिलाहट से
भर जाता है हर दिशा का ख़ालीपन
और धरती देखती रह जाती है
सूरज के देय को
किनते रंग, कितने ढंग
कितने रूप, कितना सारा
धरती जब आँखें खोलती है
तो पल भर सूरज ठहर जाता है
सारे प्रकाश और ऊष्मा के साथ
तभी तो बदलती है ऋतुएं अपना चोगा
इसलिए अनुज
तुम सदा अपनी सद्इच्छाओं के साथ
बने रहना
तभी तो रह पायेगी
यह धरती सुन्दर
और मैं मुस्कराती हुई।