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सधवा रात / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

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दिन वसन्त के ऐलै सधवा रात छै!
उबडुब-उबडुब चान फूल के गन्ध में
मतबौरोॅ तारा छै निशाँ-तरंग में
मद भरलोॅ आकाश सन्होली मदमाछी के छात छै!

कोढ़ो-कोंढ़ो फूल-फूल लग जाय केॅ
भिखमंगा रं सब लग हाथ बिछाय केॅ
मधु-संचय में लीन रसिया बात छै!

भुललोॅ छै भमरा कमलोॅ के कैद में
रस्सोॅ सें रोगी छै चम्पा-बैद नै
फाटै लेॅ टलमल रस-कोष हठात छै!

गंधराज, केतकी, चमेली, बेला में
एक रसरसी, एक मदन के खेला में
पागल राधा, पागल फूल-जमात छै।

भाँसै छै मन-प्राण सुखी संयोगिन के
पिया-बाँह में कसली कसमस भोगिन के
प्यास मिहाबै में पागल रतिसात छै!