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सनक / राजेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
किसी बहके हुए क्षण की सनक थी-
कि मैं अपनी ग़लतियों को सुधार लूँ ।
लेकिन ज़िन्दगी कोई कॉपी नहीं है कि उस पर
ग़लतियों के नीचे नैतिकता से
-नैतिकता भी कोई स्याही नहीं है-
निशान लगाऊँ
और फिर अभ्यास करूँ ग़लतियाँ सुधारने का
अभ्यास और अभ्यास...