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सनम जब तक तुम्हें देखा नहीं था / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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सनम जब तक तुम्हें देखा नहीं था।
मैं शाइर था मगर ऐसा नहीं था।
तुम्हारे हुस्न की जादूगरी थी,
कोई मीलों तलक बूढ़ा नहीं था।
तुम्हारे प्यार का जल कह रहा है,
मैं रूखा था मगर सूखा नहीं था।
यक़ीनन तुम ही मंजिल ज़िंदगी की,
ये दिल यूँ आज तक भागा नहीं था।
बड़ी कड़वी थी मदिरा आज दुख की,
तुम्हारे प्यार का सोडा नहीं था।