सनातन की जड़ों को बेवजह हिला दिया / संजय तिवारी
मनुष्य गौतम को ग्यानी नहीं कह सकती
मैं यशोधरा? खुद को रानी नहीं कह सकती
जिनसे उत्पन्न होकर ही
तुम मानव कहलाये
अपने मूल को कहा जान पाए
न देवहूति को जाना
न कर्दम को पहचाना
न स्वयम्भुव मनु का तुम्हें कोई ज्ञान है
न ही प्रजापिता की संतति होने का भान है
दुखो से ही उपजा था आवेग
सृष्टि को मिला जिससे वेग
मनु शतरूपा से उपजीं पांच संतान
आकूति? देवहूति और प्रसूति कन्याएं
दो पुत्र प्रियव्रत और उत्तानपाद
ब्रह्मा पुत्र कर्दम और मनुपुत्री देवहूति
दुःख से उपजे परिणय की सुखद अनुभूति
कर्दम को पिता का था आदेश
सृष्टि क्रम के विस्तार का आवेश
परम ग्यानी थे? माया से परे थे
पितृभक्ति से भरे थे
मनु स्वयं आये थे ऋषि कर्दम के धाम
कर के प्रणाम
ऋषि को सौप दिया देवहूति का हाथ
देवहूति के साथ भी वह तप में लीन रहे
मायास्वामी परिणय के बाद भी भोगहीन रहे
तपस्वी पति की सेवा में रही लीन
देवहूति भी हो चुकी थी यौवनविहीन
दुःख था अपार
नहीं दीखता था मुक्ति का कोई द्वार
कल की लाबी यात्रा के बाद जब ध्यान टूटा
ऋषि को लगा पिता का स्वप्न छूटा
पति पत्नी ने किया विन्दुसार में स्नान
उनके यौवन को मिले प्राण
ऋषि ने एक विमान बनाया
पत्नी को साथ बिठाया
काल की गति से भी निकल गए आगे
देवहूति के साथ कर्दम के स्वप्न जागे
अंतरिक्ष में करते रहे विहार
नौ कन्याओ के जनक बन गए
दम्पति थे विमान में ही सवार
लौटे तो युग बीत चुका था
धरती पर सृष्टि को काल जीत चुका था
तब ऋषि ने दिया सापेक्षता का सिद्धांत
काल की महिमा बताई
पुतियो के विवाह की तिथि निकलवाई
मारीचि का विवाह कला से
अनुसूया का अत्रि से,
श्रद्धा का अंगिरा से,
पुलत्स्य का हविर्भू से?
गति का पुलह से
क्रिया का कृतु से?
ख्याति से भृगु का
अरुंधति का वशिष्ठ से
और
शान्ति का अथर्व से हुआ विवाह
फिर भी रही एक पुत्र की चाह
ऋषि का तप और देवहूति के दुःख
विधाता को देना ही पड़ा सुख
विष्णु को स्वयं कपिल बन कर आना पड़ा
ऋषि की मर्यादा और
माता का मान बढ़ाना पड़ा
जिसके पिता ने जगत को दिया
समय के सापेक्षता का ज्ञान
कुल का अभिमान
कपिल ने सांख्य दर्शन का भान कराया
सृष्टि से सृष्टि का ज्ञान कराया
सोचो? कितने बड़े थे ये लोग
दुःख से ऊब कर पलायन नहीं अपनाया
सृजन में लगे थे
सच कहती हूँ
ये लोग ही जगे थे।
तुम्हारे कथित ज्ञान ने तो रुला ही दिया
गौतम
सनातन की जड़ों को बेवजह हिला दिया।