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सनातन के विरूद्ध प्रथम पंथ प्रवर्तक / संजय तिवारी

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मैं
उस गौतम को भी जानती हूँ
ऋषि रूप में पहचानती हूँ
इंद्र का दोष अहिल्या से बड़ा था
सामने यक्ष प्रश्न खड़ा था
इंद्र तो इंद्र था,
उससे कोई नाता नहीं था
अहिल्या अर्धांगिनी थी
उससे बड़ा कोई ज्ञाता नहीं था
पति को न पहचान पाने का था अभिशाप
गौतम ने दिया था शाप
लेकिन उस शाप में भी
नहीं था चोरी या दुराग्रह
ब्रह्म को भी अहिल्या के लिए
चल कर आना पड़ा
ऐसा था पति की शाप का अनुग्रह
गौतम को तप का आकार बढ़ाना पड़ा
करते रहे पथराई अहिल्या की रक्षा
भूल गए मोक्ष की कक्षा
अहिल्या ने दिया तो क्या हुआ
 गौतम को भी तो देनी पड़ी परीक्षा
यह कोरी कथा नहीं
इसी धरती पर हो चुका है
तुम्हारी सोच से
काल का पहिया नहीं रुका है
तुम उस गौतम से बड़े भी नहीं हो
गौतम की तरह संकल्प शिला पर
खड़े भी नहीं हो
यह सनातन की त्वरा है
साधक तक ब्रम्ह को स्वयं
चल कर आने की परंपरा है
याद रहको मेरी बात
ऐसा है तुम्हारे ज्ञान का प्रतिघात
चाहे जितने भी हों
तुम्हारे समर्थक
तुम केवल कहलोगे
सनातन के विरूद्ध प्रथम पंथ प्रवर्तक।