बलम जी भरके मंगिया के आपन बना लिहल।
सनेहिया सात जन्मों के सेनुरवा से सजा दिहल॥
सात बचनिया सात फेरा, जन्म-जन्म के नाता,
प्रीत के नईया खेवेके बा, भाग्य बनवले विधाता,
नेहिया लगाके मोरे पिया, प्रेम नगरिया बसा दिहल॥
बलम जी भर के।
तेज के नइहर हम चली अइली, सैया तोहरी नगरिया,
सुना-सुना हो गइल बा बाबुल के ऊ अटरिया,
सखिया सलेहर सब छूट गइली, बिधना डोर मिला दिहल॥
बलम जी भर के मंगिया॥
प्रेम नगर में प्रेम लुटा ल प्रेम बा आपन थाती,
चंचल मनवा सावन भादो नेह के दिया बाती,
अतुलित धार बहे सुरसरि में सागर में मिला दिहल॥
बलम जी भर के मंगिया के आपन बना लिहल॥