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सन्तरे / स्वप्निल श्रीवास्तव

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सन्तरों को छूते हुए
मैं मोहक स्मृतियों से भर
जाता हूँ
उनकी महक से हो जाता हूँ
बेचैन

सन्तरों के छिलके उतारते हुए
मेरे हाथ ख़ुशबू से लबरेज़ हो जाते हैं

उनकी फाँक और धारियाँ देखकर
मुझे उस स्त्री के होंठों की
याद आती है जिसको मैंने पहली बार
छुआ था

सन्तरों के बाग़ान में रहनेवाली
स्त्रियों की देह से आती है
सन्तरों की ख़ुशबू

सन्तरों का व्यवसाय करनेवाले
लोगों के लिए सन्तरा एक फल है
लेकिन जो लोग सन्तरों से इश्क़ करते हैं
वे उनके भीतर खोजते रहते हैं
रस की नदी