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सन्देश / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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नहि उपदेश
सिनेही दृष्टि शेष- अशेष
अपनेक नाओं सँ
आपकता भरल हमर सन्देश
नहि बहुरुपिया भेष
दिग्भ्रमित अनुज केँ
कुबाट पर औनाएत देखि
सुपथ पर आनि
एकबेर फेर
अपन जन मानि
हिया सँ लगाएब अछि
एकमात्र उदेस
औ पवित्र माटिक भाय
कत' गुम्म भेलहुँ आइ?
कश्मीर अछि बेहाल
की बुझलहुँ हाल-चाल ?
नहि स्वामित्वक आधार सँ
नहि अनुजक व्यवहार सँ
मात्र क्षणिक लोकाचार सँ
मानवीय शिष्टाचार सँ
किएक धयने छी मोन मे
सदिखन अधिग्रहणक आश
धरु संतोख शांत करू पिआस
जाहि धरा पर अपन अधिकार
ताहु ठाम त' परसू संवेदनाक सचार
कर्म सँ नहियो त'
सरिपहुँ ! भावे टा सँ
ताहि मे अग्राह्य किएक
तकर कोन अभाव ?
सगरो पसरल बाढ़िक पसाही
उजड़ि रहल नगर गाम
जगाउ आत्म संचारी धाही
जोडू मोन केँ निष्काम
पंथक आरि केँ जगजगार
किएक करैत छी औ भजार ?
बनू आत्म सापेक्ष
धेय पंथ निरपेक्ष
मातृ श्रद्धा सभ धर्मक सार
आबहु त' सोचू
इतिहास साक्षी अछि
दुनू केँ भोंकत अदना पाछाँ सँ गछार
फुटा क' छिरिया क'
दुनू भाय केँ अपस्याँत क' देत
अनचोके मे भांगि देत कपार
हम छी अग्रज
जौं मोन साफ़ राखब
नहि बूझब अवरज
भाय नहि अड़िया त मानू
ल'ग दूरक भेद केँ जानू
अपन-आन केँ पहिचानू
दू बेर लड़ि क' देखल
परिणाम की भेंटल
एखनो नहि सोचल
रचि रहलहुँहें अनिय- मेखल
सुधरि जाउ
ल'ग आउ
उज्जर चामक साफ़ बगुलबा
टकधियान धयने तकैत
वृथा मे लेत हबैक