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सन्ध्या-चित्र-4 / विजयदेव नारायण साही
Kavita Kosh से
नम छींटेदार पुरवाई
उड़ी-उड़ी फुहार
आख़िरकार
गिरती है
नीम की हज़ार
नन्ही-मुन्नी गदोलियों पर ।
नाजुक पत्तियों से बोझल
यूकेलिप्टस की साँवली डालें
यहाँ से वहाँ तक
फैलती हैं :
लौट-लौट आती हैं ।
ऊपर घटाटोप ।