भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सन्ध्या / पंकज चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
जीवन के बयालीसवें वसंत में
निराला को लगा -
अकेलापन है
घेर रही है सन्ध्या
बयालीसवें जन्मदिन पर
पुछा एक स्त्री से
कैसा लगता है
महाकवि की बात क्या सही है?
कहा उसने
बढ़ी है निस्संगता
और जैसे सांझ ही क्या
रात्रि-वेला चल रही है
बीच के इस फ़ासले में
और चाहे कुछ हुआ है
कम हुई है रोशनी
शाम का झुटपुरा
अब और गहरा हो चला है
कवि, जबसे तुम गये हो