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सन्नाटे फिर करते हैं कुछ आपस में सरगोशियाँ / रंजना वर्मा

सन्नाटे फिर करते हैं कुछ आपस में सरगोशियाँ
चारो ओर बड़ी वीरानी चुप-चुप हैं खामोशियाँ

आँखें मेरी खुलते ही हैं उस ने यूँ नज़रें फेरीं
इससे लाख गुना अच्छी थी वह मेरी बेहोशियाँ

मौजें ऐसे उमड़ी आकर साहिल के आगोश गिरीं
डर कर टीले रेतों के करते हैं कुछ सरगोशियाँ

मौसम ने यूँ करवट बदली दे बहार पतझड़ पाया
वस्ल मुहब्बत के अफ़साने ख़्वाब हुईं मदहोशियाँ

तेरी ख्वाहिश हो जो पूरी मैं बन तारा टूट पड़ूँ
भायीं दिल को पर कब तेरे लब पर यूँ खामोशियाँ