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सपनामे अपन जीवन हम राति सजाबै छी / बाबा बैद्यनाथ झा

सपनामे अपन जीवन हम राति सजाबै छी
फेर देखि सत्यताकेँ हम भोरे लजाबै छी

जे गाछ मनोरथकेर बड़ प्रेमसँ रोपल छल
आब हाथमे आड़ी लऽ हम काटि खसाबै छी

एक स्वप्न-महल ओ अप्पन दुनियाँ जे सुन्नर छल
के हतभाग्य हमर सनक भऽ ठाढ़ जराबै छी

खान्दानकेर जे इज्जति बड़ कष्टसँ बाँचल छल
ओ नाचैए महफिलमे हम बीन बजाबै छी

बिनु मान-प्रतिष्ठाकेर बाजू ओ मानव की
ने चाही एहन जीवन तेऽ मौत मनाबै छी