सपना तोहार आइल ना / योगेन्द्र नाथ शर्मा
समय राखि धरि दिहल चिनिगिआ सुनगत रहल बुताइल ना
रात न बीतल अइसन जेह में सपना तोहर आइल ना !
फुदकत रहे मउज में मन के पंछी डारी-डारी पर
कबहूँ नाचे बीच खेत में, कबहूँ गावे आरी पर
फुनगी-फुनगी आँख मिचौनी खेलत रहे चिरइअन से,
कबहूँ करे इआरी बढ़ के चरवाहन से- गरुअन से,
बाकिर जबसे दरस भइल तोहर ई जिनगी बदल गइल
भटक गइल मन चान-सुरुज के आपन डगर भुलाइल ना ! समय.....
कलीअन के मन राखे खातिर आजो भौंरा गावेला,
रिझा-रिझा अपनावे खातिर आजो रास रचावेला,
आजो घास-कटउअल खेललें घसिआरा-घसियारिन,
अॅजुरी बाहर धार गिरावे, ली पानी के पनिहारिन,
सब देखीला, फिन देखीला आपन ढहल घरोना के
गँवे-गँवे दिन बीत गइल जे कबो लवट के आइल ना ! समय.....
झरल रूप के राख, चननिआ छितराइल ठॉवा-ठॅइया,
आसमान में उड़ल तिलंगी डोर चलल भुँइआ-भुँइआ,
कहीं सुहागिन सँझ-बाती कर-जाली तुलसी चउरातर,
कहीं रँड़ापा माथ धुनेला बइठल-बइठल कउरा तर,
सभतर खोजीला छवि तोहर, रह जालीं अउआ-बउआ
दुनिया हँसे मारि के ठट्ढा, आपन मन हरखाइल ना ! समय.....
दउड़-दउड़ मुट्ठी में पकड़ी, घाम न बाकिर पकड़ाला
अइसे ही बेकस परान के ई पिआर भरमा जाला,
अब गुलाब से नीमन हमरा लागे कँटगर नागफनी,
जे बिलमा के बतिआ लेला दुख बाँटेला तनी-तनी
तब लागेला जइसे हमरा अगल-बगल तू ठाढ़ कहीं
ई हमार परतीत-भले जग साँच बात पतिआइल ना ! समय.....