भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपना देखा / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक सुहाना सपना देखा,
सपना देखा रे!

सपने में देखा एक सर्कस
सर्कस में था जोकर,
मन बहलाता था वह सबका
हँसकर, गाकर, रोकर।
मैं बोला-जोकर जी कोई
करतब नया दिखाओ,
तुरत निकाला आम कहीं से
जोकर बोला-खाओ!
खाते ही मुझको तो भाई
दिखने लगे सितारे,
हर तारे पर जोकर बैठा
संग लिए गुब्बारे।

बड़ा गजब एक सपना देखा,
सपना देखा रे!

जगमग-जगमग एक किला था
किला बड़ा अलबेला,
तरह-तरह की पगड़ी वाले
लोगों का था मेला।
मैं बोला-जी, क्या चक्कर है
इतने में क्या देखा,
सबके चेहरे पर खिंच आई
हैरानी की रेखा।

नेता!नेता! चिल्लाए सब
हार इसे पहनाओ
बढ़िया बरफी पिस्ते वाली
राजभोग खिलवाओ।
छककर खाई बरफी मैंने
छककर बालूशाही,
सुबह उठाया अम्माँ ने तो
चुपके से मुसकाई।

सपने में कुछ बोल रहा था-
क्या-क्या देखा रे?
बड़ा अनोखा सपना देखा
सपना देखा रे!