सपना देख्या झलकारी हो / रणवीर सिंह दहिया
न धर्म रक्षा और न जाति रक्षा झलकारी ने चूड़ियां पहनना छोड़ देश रक्षा के लिये बन्दूक हाथ में ले ली थी। उसे न महल चाहिये थे न कीमती जेवर और न रेशमी कपड़े और न दुशाले। वह तो रानी थी और न ही पटरानी। वह किसी सामन्त की बेटी भी नहीं थी तथा किसी प्रकार की जागीरदार की पत्नी भी नहीं वह तो गांव भोजला के एक साधारण कोरी परिवार में पैदा हुई थी और पूरन को ब्याही गई थी। पिता भी आम दलित परिवार से थे और पति भी लेकिन देश और समाज के प्रति प्रेम और बलिदान से उन्होंने इतिहास में खास जगह बनाई थी।
झलकारी बाई बचपन से ही बहुत बहादुर, हाजिर जवाब तथा सपने देखने वाली लड़की थी। एक बार वह मिट्टी में खेल रही थी और किले नुमा घरौंदा बना रही थी। वह सोचने लगती है और सोचते-सोचते सो जाती हैं और सपने में क्या देखती हैं भलाः
सपना देख्या झलकारी हो जिब सोई उड़ै ताण कै॥
सपने में दिया महल दिखाई
कई जागां दीखैं खड़ै सिपाही
पाई संगत जमा न्यारी हो, महल बीच मैं आण कै॥
बैठ घोड़े पै फिर ऐड़ लगाई
काले बालां संग चुन्नी लहराई
उठाई हाथ मैं कटारी हो, संगनी अपनी मान कै॥
पूरे महल का फेर दौरा लाया
दिल अपने मैं नक्शा जमाया
बताया झांसी नगरी म्हारी हो, बात सही बखाण कै॥
नींद खुली जिब यो पाया अंधेरा
नयों बोली एक दिन आवै सबेरा
लुटेरा फिरंगी तै भारी हो, कहै रणबीर पिछाण कै॥