भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सपना बना रहा सपना / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
Kavita Kosh से
सपना बना रहा सपना
हो न सका कोई अपना
पत्थर दिल न पसीज सका
व्यर्थ हुआ जलना-तपना
शासक, अमर शहीदों का
भूल गए मरान-खपना
हत्याओं-अपहराणों की
आम हुआ ख़बरें छपना
छुरी बगल में छपी हुई
राम-नाम मुख से जपना
देखा जस उस रूपसि को
बन्द हुआ पलकें झपना
कंचन-सी काया को है
माटी में मिल कर खपना