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सपना रखना / सुधांशु उपाध्याय
Kavita Kosh से
केवल साँसें लेना
ये तो ख़ानापूरी है
दुनिया बदले या ना बदले
लेकिन इसका सपना रखना
बहुत ज़रूरी है
रोज़ बदलती दुनिया
लेकिन
यह बदलाव नहीं
जिन पेड़ों पर
साँप रेंगते
उनकी छाँव नहीं
वक्त नहीं है --
कहना ये
नक़ली मजबूरी है
मौसम का हर
तौर-तरीका
क्यों मंजूर करें
बर्फ़ हो गए
चेहरों पर
थोड़ी-सी आग धरें
कुछ लोगों की
ख़ातिर दुनिया
अभी अधूरी है
बड़े घरों पर
बहुत भरोसा
कर के देख लिया
इन खजूर के
पेड़ों ने
छाया तक नहीं दिया
बच्चों के आ
नरम गले पर
हँसती छूरी है
अपने आप
नहीं कुछ होता
करना होता है
बेटों को ही
कर्ज़ बाप का
भरना होता है
अभी पसीने
को देनी
उसकी मज़दूरी है