Last modified on 20 फ़रवरी 2009, at 00:32

सपना / तुलसी रमण

चला आता नींद में
एक हंस सपना

भरी दोपहरी कभी
जागते को भी
सुला देता सपना

और फिर
बगुले की तरह
चला जाता हमसे

हम बगुले के दुख में
जागते रहते हैं
हँस के लिए
जून 1988