भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपना / मधुप मोहता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्योंकि मैं यथार्थ की अंतिम पीढ़ी
का अंतिम प्रतिनिधि हूं,
सपने देखना मेरा नैतिक अधिकार है।

सपने दिखाना एक बाध्यता,
निवेशकों के लिए वांछित प्रलोभन,
क्रेताओं के लिए आवश्यक विज्ञापन,
प्रकाशकों की नियति हो सकता है
सपने देखना, मेरी ऐतिहासिक विरासत है,
मेरे सांस्कृतिक अभिजात्य का अंग।
मेरा नैसर्गिक उत्तरदायित्व है।
सपने देखने की कला, मुझे घुट्टी में मिली है।

मेरे सपने असामाजिक नहीं हैं,
समुद्र-तट पर दौड़ती अर्धनग्न
युवतियां, मख़मली
अंधेरों में थिरकती सुडौल बालाएं,
मेरे सपनों का विषय नहीं है।
मैं उपभोक्ता संस्कृति के सभी
प्रसाधनों से सुसज्जित हूं।
वातानुकूलित एकांतो में कमनीय
कन्याओं से साक्षात्कार,
मेरी दैनिक विवशता है।
सुनहरे बालों, नीली आंखों, पैनी चितवन,
सुरीली आवाज़, सलोनी मुस्कुराहट से सजी-धजी, सुंदर
लड़कियों के झुंड के झुंड,
मेरे सपनों का द्वार खटखटाते तो हैं,
पर मेरे सपनों का धरातल उनसे उन्मुक्त है।

मेरे सपने गेय नहीं हैं,
आरोह, अवरोह से परे, मेरे
सपने परात्पर से परे हैं।

मेरे सपनों में कोई अवतार नहीं आता,
कोई देवी, परी या अप्सरा नहीं आती।
कोई जलपरी उदात्त स्वरों में गीत नहीं गाती।
कोई दुंदुभि, कोई वीणा, कोई बांसुरी नहीं बजाती।
मेरे सपने लय, प्रमाण, ताल, कला, मात्रा,
शम्या से हीन हैं,
अपनी ही तान, अपनी वृत्ति,
अपने रस में लीन हैं।

मेरे सपने ग्रामों और जातियों की
शुद्धि और विकृति को नहीं जानते,
औड़व, षाड़व, श्रुति को नहीं मानते।
विलक्षण हैं मेरे स्वप्न,
अंश को, ग्रह को, तार को,
मंद्र को नहीं पहचानते।
मेरे सपनों का कोई न्यास, अपन्यास
बहुत्व य अल्पत्व नहीं है।
मेरे स्वप्न अपरिभाषित हैं।
उनका कोई अदृष्ट, अभ्युदय रक्ति, विशिष्ट,
सन्निवेश नहीं है।
मेरे सपने संपूर्ण नहीं हैं, असंपूर्ण भी नहीं।
ध्वनि रहित हैं मेरे स्वप्न।

मिथ्या और सत्य का व्यवधान
नहीं हैं मेरे स्वप्न।
मेरे स्वप्नों में कोई भावपूर्ण उपाख्यान,
या ज्ञानोन्मेष का इतिवृत नहीं होता
मेरे स्वप्न अतिरंजित लक्षणाओं,
अभिधाओं, व्यंजनाओं से अपरिचित हैं।
मेरे स्वप्न किसी ऐतिहासिक
पुरुषार्थ की अभिव्यक्ति नहीं हैं,
मेरे सपनों के इंद्रधनुष के
वैज्ञानिक विश्लेषण, मनोवैज्ञानिक अन्वेषण से,
किसी किरण, ज्योत्स्ना, उषा, कीर्ति, दीप्ति
या आभा की अस्वस्ति नहीं होती।
मेरे सपनों में,
चिंताओं से चिंताएं नहीं जलतीं,
वासनाओं का विनिमय नहीं होता,
आशाएं अधीर नहीं होतीं,
श्रद्धाएं श्रांत नहीं होती।

मेरे स्वप्न मेरा आश्रय हैं।
परिवर्तन की परंपरा की सनातन स्मृति।
मेरी अनुभूति के एकांत की अभिव्यक्ति का व्याकरण,
मेरा माध्यम हैं मेरे स्वप्न।

वे जो अमराई में गुलेल चला रहे हैं,
वे जो टेसू के रंग में भीगे हैं, सराबोर हैं,
वे जो हरसिंगार हिला रहे हैं,
वे जो सड़क पर ठहरे पानी में
काग़ज़ की नाव चला रहे हैं,
वे जो मैदान में पिट्ठू खेल रहे हैं,
वे जो आंख बचा कर गन्ना चूस रहे हैं,
वे जिनकी धमाचौकड़ी ने आकाश उठा रखा है,
मेरे सपनें हैं, तुम उन्हें मत देखो।
मेरे सपनों में, एक बौना आदमी आकाश छूना चाहता है।

मैं जानता हूं कि मेरे सपनें संयम नहीं जानते,
नियम नहीं मानते, यथार्थ का उपहास हैं
मेरे सपनें यथास्थिति का परिहास हैं।
तुम उन्हें मत देखो।
मेरे सपनों में तटस्थ इतिहास
भटकता है, प्रवाह की खोज में,
मेरे सपने यथार्थ से संधि की प्रस्तावना हैं
मेरे सपनों में समाहित अराजकता ही
शांति की संभावना है।
मेरे सपनों में परम्पराओं की परिधि से
परे, क्षितिज का अपरिमित विस्तार है,
सत्य की पीड़ा से निर्मित शब्दों का निर्मम सार है
तुम उन्हें मत देखो।

सपनों की उफनती नदी का
कोई गंतव्य नहीं होता,
मन ही महासागर है, मन ही मानसरोवर।
सपने अधूरे मन को तन से जोड़ते हैं,
सपना संवेदना और सृष्टि के बीच बंधा पुल है।
मैं एक सपना हूं, जो मुझे, मुझसे जोड़ता है।
क्योंकि सपनों में मैं वह हो जाता हूं,
जो मैं होना चाहता हूं, इसलिए
तुम मुझे मत देखो।

जो आंखों में लहलहाते हैं,
पर बह नहीं पाते,
होठों पर थरथराते तो हैं,
पर अनकहे रह जाते हैं।

निर्निमेष, निर्लिप्त, आतुर, आक्रांत
उन्मत्त, उत्तेजित, शाश्वत, शांत।
एक स्वगत अभिव्यक्ति,
एक आस्क्त एकांत के कोमल
स्पर्श की अनुभूति की स्मृति
का अवशेष हैं मेरे सपने।

मैं दिन भर भागा हूं, टूटा हूं,
बंटा हूं, खोया हूं, थका हूं,
कुछ खोकर, कुछ पाकर सांझ
गंवाकर, इस आस्था के
अजन्मे क्षण में, मेरी बंद मुट्ठी में
शेष हैं मेरे सपने।

(वर्ष 2001)